लेखनी प्रतियोगिता -15-May-2023.... लीला बा...
किसी ने सच ही कहा की कभी कभी हम कुछ लोगों से बस ऐसे ही टकरा जातें हैं... लेकिन ये मुलाकात हमारे लिए एक कभी ना भूलने वाली याद बन जाती हैं...।
ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ.... एक शख्स से कुछ दिनों की बात मेरे दिल में इस कदर बस गई.... की मैं उन्हें कभी नहीं भूल सकतीं...। ऐसे वक्त पर मैं उनसे मिली जब मैं शायद जिंदगी के सबसे मुश्किल दौर में थीं....।
उन शख्स का नाम था :- लीला बा...... ।
उम्र यहीं कोई सत्तर के आसपास....।
कुछ दिनों पहले मेरे पति का एक्सीडेंट हुआ था...। उनके बांये पैर के घुटने में बेहद गंभीर चोट आई थीं...। चोट अंदरूनी थीं.... बाहर सिर्फ सूजन दिखाई दे रहीं थीं..। देर रात साढ़े ग्यारह बजे वो काम पर जा रहें थे...। उनका नाइट शिफ्ट का काम था...। तकरीबन बारह बजे मुझे फोन आया ओर बताया गया की उनका एक्सीडेंट हो गया हैं...। आधी रात को मेरा तो अकेले जाना नामुमकिन था इसलिए मैंने मेरे जेठ को भेजा...। तकरीबन साढ़े बारह बजे वो दोनों घर आए...। साधारण सा उपचार करवा कर जेठजी उन्हें घर ले आए थे...। उसके बाद वे अपने घर वापस चल दिए...। लेकिन अंदरूनी चोट ने उनको
पूरी रात सोने नहीं दिया...। जैसे तैसे रात तो निकाली...। सवेरे तुरंत ही डाक्टर का अपाइंमेंट लिया और हास्पिटल पहुंचे..। उसके बाद तो एक हास्पिटल से दूसरी हास्पिटल और दूसरी से तीसरी... लगभग छह सात हास्पिटल में रिपोर्टस पर रिपोर्टस निकालते और दिखाते रहें...। हर जगह हमें आपरेशन करवाने का ही बोला गया..। मैं हर जगह एक आस लिए भटकती रहीं पर मजबूरन मुझे आपरेशन करवाना ही पड़ा...। एक प्राइवेट हास्पिटल में जनरल वार्ड में पतिदेव को एडमिट किया गया...। उस वार्ड में कुल दस बिस्तर थे..। चार बैड हमारे बैड के पास ही थे...।बाकी के बैड कमरे के अलग तरफ थोड़ी दूरी पर थे...।हमारे बैड के पास ही लीला बा का बैड था...।
हमारे गुजरात में वृद्ध महिलाओं को बा से संबोधित किया जाता हैं...।
हमारे वहां आने से एक दिन पहले ही लीला बा का ओपरेशन हो चुका था...। पतिदेव का भी अगले दिन ओपरेशन होना था... । मैं बहुत डरी ओर घबराई हुई थीं...। उससे ज्यादा मैं परेशान भी बहुत थीं...। क्योंकि पतिदेव से एक हफ्ते पहले ही मेरी बेटी का भी एक्सीडेंट हुआ था...। वो भी घर पर बैड रेस्ट पर थीं...। ऐसे में घर और हास्पिटल के बीच.... पति और बेटी को संभालना थोड़ा मुश्किल हो रहा था... । उस वक्त जब इन मुश्किल हालातों में मेरे अपनों ने मेरा साथ छोड़ दिया था...। उस वक्त हास्पिटल में मौजूद आसपास के मरीजों और उनके परिजनों ने मेरा बहुत साथ दिया... । खासकर लीला बा ने और उनके परिजनों ने...। पतिदेव को तो हास्पिटल से चाय, नाश्ता और खाना देने की व्यवस्था थीं....। ऐसे में लीला बा और पास के कुछ मरीज अपने खाने में से मुझे थोड़ा थोड़ा खाना और नाश्ता देते थे...। क्योंकि मेरे घर से सभी अपनों के होने के बावजूद मुझे कुछ नहीं भेजा जाता था...। मुझे बोला गया था अपना इंतजाम खुद से कर लूं...।ये बात मेरे छोटे देवर हास्पिटल में कहकर गए थे....।मेरे मना करने पर वो कहती मैं तेरी माँ जैसी ही हूँ.....। लीला बा घर पर मौजूद मेरे बच्चों से विडियो कॉल पर बात करतीं ओर उनको भी हिम्मत देतीं...। जब में कुछ घंटों के लिए घर जाती काम काज और बच्चों की देखरेख के लिए तब लीला बा मेरे पतिदेव से बातचीत कर उनको भी हिम्मत देतीं...।
आपरेशन होने के बाद अगले दो दिन लीला बा वहीं थीं...। तीसरे दिन जब उनको डिस्चार्ज मिल रहा था तो मैंने उनके पांव छुकर आशिर्वाद लिया और उनका शुक्रिया अदा किया....। तब मेरे सिर पर हाथ फेरकर उन्होंने मुझे ढेर सारी दुआएँ दी और मेरे माथे को भी चूमा...। आज उन सभी के प्यार, साथ और दुआओं की वजह से ही पतिदेव और बेटी की हालत में बहुत अच्छा सुधार आ गया हैं...।
लीला बा से मैं फिर कभी नहीं मिल पाई... ना ही हास्पिटल में मौजूद दूसरे लोगों से.. लेकिन आज भी उन सभी को दिल से बहुत याद करतीं हूँ...। सच ही हैं की मुश्किल वक्त में जो काम आए... वही सच्चे रिश्ते हैं...।
पता नहीं उन सभी से खासकर लीला बा से कभी मिल पाऊंगी या नहीं लेकिन उनकी बिन मांगी दुआ ने उस वक्त मुझे बहुत हिम्मत दी थीं...। मैं भी उनकी लंबी और स्वस्थ जीवन की हर पल दुआ करतीं हूँ....।
डॉ. रामबली मिश्र
18-May-2023 01:21 PM
Nice 👍🏼
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Natasha
16-May-2023 08:21 AM
Nice
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Abhinav ji
16-May-2023 07:22 AM
Nice
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